तुम से मिलना अच्छा लगता है

तुम से मिलना अच्छा लगता है

शायद नहीं जानता तुमको कैसा लगता है
मुझे तुम से मिलना बहुत अच्छा लगता है
यूं तो दुनिया में बहुत सारे हैं अपने, फिर भी
तुम को अपना कहने में फक्र लगता है।

ये जो उलझन है वो सुलझती नहीं
लाख कर लूं जतन गिरह खुलती नही
जानता हूं मैं कोई नही हूं तुम्हारा, फिर क्यूं
तुमसे रिश्ता जन्मों का सा लगता है।

चल रहे थे अनजान दो मुसाफिर
राह टकरा गई, नजर को नजर भा गई
अब तो लगता है सफर यूंही चलता रहे
तुम मिल गए सब मिल गया, मंजिल मिले ना मिले।

राह इतनी आसान पहले भी तो ना थी
रस्मों रिवायतों के झंझट पहले भी तो थे
इनसे डरते रहे, लोग मरते रहे, प्यार करते रहे
लैला मजनू के किस्से, हीर की दास्तान बनती रही
मिल गए एक दिन जो, इश्क मुकम्मल होगा
वरना इन किस्सों के जैसा अपना भी हश्र होगा।।

आभार – नवीन पहल – ०२.०३.२०२२ ❤️🌹🙏💐

# प्रतियोगिता हेतु

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7 Comments

Shrishti pandey

03-Mar-2022 08:27 PM

Very nice sir

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Abhinav ji

03-Mar-2022 08:58 AM

Nice 👍

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Niraj Pandey

03-Mar-2022 12:32 AM

बहुत ही बेहतरीन

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